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Uchchatar Samashti Arthashastra

Uchchatar Samashti Arthashastra

Author : H L Ahuja

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  • ISBN : 9789352534364
  • Pages : 712
  • Binding : Paperback
  • Language : Hindi
  • Imprint : S Chand Publishing
  • © year : 2018
  • Size : 6.75" x 9.5"

Price : 550.00 440.00

भारतीय विश्वविद्यालयों के एम. ए. (अर्थशास्त्र) एवं एम. कॉम. के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत सरल एवं सुबोध भाषा में लिखी गयी यह पुस्तक सिविल सेवा के अभ्यर्थियों के लिए भी उपयोगी है।

• केन्ज़ के समष्टिपरक सिद्धान्तों की विवेचना के साथ केन्ज़ उपरान्त विभिन्न समष्टिपरक सिद्धान्तों की आलोचनात्मक व्याख्या
• नव-केन्जि़यन समष्टि अर्थशास्त्र की समीक्षा
• सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एवं सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) की विस्तृत व्याख्या
• पूँजी-प्रधान टेक्नोलॉजी के प्रयोग का वर्णन
• वर्ष 2013-2014 में रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति को अधिक कठोर बनाने एवं जनवरी 2015 से मौद्रिक नीति में नरमी बरतने जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा
• सोलो के विकास (वृद्धि) के मॉडल की व्याख्या
• विकासशील देशों में विकास के लिए राजकोषीय नीति तथा कराधान की विवेचना
• राजकोषीय नीतिः सार्वजनिक ऋण तथा नई मुद्रा-सर्जन द्वारा विकास के लिए वित्त-व्यवस्था का विवेचनात्मक अध्ययन
• 'आर्थिक विकास का नवीन सिद्धान्तः अन्तर्जात विकास मॉडल' नामक एक नया अध्याय दिया गया है।

भाग-1: आय तथा रोज़गार
• समष्टि-अर्थशास्त्रः विषय-क्षेत्र एवं इसकी विभिन्न विचारधाराएं • राष्ट्रीय आयः अर्थ व धाारणाए • आय तथा रोज़गार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त: पूर्ण रोज़गार मॉडल • केन्ज़ का रोज़गार सिद्धान्त • राष्ट्रीय आय का निर्धारण केन्ज़ का दो क्षेत्रीय मौलिक मॉडल • पांचवें अधयाय का परिशिष्टः केन्जिय़न तथा प्रतिष्ठित आर्थिक सिद्धान्त: एक तुललनात्मक अध्ययन • सरकारी व्यय समेत राष्ट्रीय आय का निर्धारणः तीन-क्षेत्रीय मॉडल • खुली अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का निर्धारण: चार-क्षेत्रीय मॉडल • स्फ़ीतिकारी तथा अवस्फ़ीतिकारी अन्तर • उपभोग फलन • उपभोग के सिद्धान्त • निवेश • गुणक का सिद्धान्त • IS-LM वक्र मॉडल • परिवर्तनशील कीमत सहित समस्त पूर्ति तथा समस्त मांग सिद्धान्त • विकासशील देशों के लिए केन्ज़ के सिद्धान्त की प्रागिकता प्रासंगिकता अथवा सार्थकता • मजदूरी-कीमत परिवर्तनशीलता तथा रोज़गार • बेरोजगारी तथा पूर्ण रोजगार नीति

भाग-2: मुद्रा, ब्याज तथा कीमतें
• ब्याजः प्रतिष्ठित तथा ऋण-योग्य राशियों के सिद्धान्त • केन्ज़ के मुद्रा-माँग तथा ब्याज दर सिद्धान्त • मुद्रा की माँग के केन्ज़ोत्तार सिद्धान्त • मुद्रा का परिमाण सिद्धान्त: फि़शर का दृष्टिकोण • अधयाय 19 का परिशिष्टः मूल्य सूचकांक तथा मुद्रा्स्फ़ीति की माप • फ्रीडमेन का मुद्रा तथा कीमतों का सिद्धान्त • केन्ज़ का मुद्रा तथा कीमतों का सिद्धान्त • मुद्रावाद तथा केन्जिय़न समष्टि अर्थशास्त्र तुलनात्मक अधययन • मुद्रा-स्फ़ीति के सिद्धान्त • मुद्रास्फ़ीति के प्रभाव तथा उसका नियन्त्रण • मुद्रास्फ़ीति तथा बेरोजगारीः फि़लिप्स वक्र तथा विवेकपूर्ण प्रत्याशायें • स्थैतिक-स्फ़ीति की समस्या • पूर्ति-पक्ष अर्थशास्त्र • नव-क्लासीकल अर्थशास्त्र: विवेकशील प्रत्याशाओं का मॉडल • नव-केन्जि़य़न अर्थशास्त्र

भाग-3: व्यापारिक चक्र तथा स्थिरीकरण के लिए समष्टिपरक आर्थिक नीति
• व्यापारिक चक्र सिद्धान्त • राजकोषीय नीति तथा आर्थिक स्थिरीकरण • मौद्रिक नीतिः उद्देश्य, भूमिका तथा उपकरण

भाग-4: मुद्रा तथा बैंकिंग
• मुद्रा का स्वरूप तथा कार्य • वाणिज्य बैंकिंग • केन्द्रीय बैंकिंग • रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति • मुद्रा-पूर्ति तथा उसके निर्धारक

भाग-5: खुली अर्थव्यवस्था का समष्टि अर्थशास्त्र
• भुगतान शेष • विदेशी विनिमय दर • अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क तथा मुण्डल-फ्लेमिंग मॉडॅल

भाग-6: आर्थिक विकास (वृद्धि) के सिद्धान्त
• आर्थिक विकास का प्र्रतिष्ठित सिद्धान्त: रेकॉर्डो का विकास मॉडल • आर्थिक विकास का हैरड-डोमर मॉडल • विकास (वृद्धि) का नव-प्रतिष्ठित सिद्धान्त: सोलो का मॉडल • आर्थिक विकास का नवीन सिद्धान्त: अन्तर्जात विकास मॉडल • विकासशील देशों में विकास के लिए राजकोषीय नीति तथा कराधान • राजकोषीय नीतिः सार्वजनिक ऋण तथा नई मुद्रा-सर्जन द्वारा विकास के लिए विन-व्यवस्था

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